शुक्रवार, 4 अगस्त 2017

देशभक्ति गीत भाग - 4

 देशप्रेमी गीत Part -4

गीत यहाँ  खुशहाली के

युग- युग से हम रहे उपासक , गेंती और कुदाली के
हल की नोक लिए लिखते हम , गीत यहाँ  खुशहाली के।

घुँघरूवाले बैलों के जब ,  मिट्टी महके पाँव तले
बहे पसीना तेज धूप में , या बादल की छाँव तले
दर्शन होते इंद्रधनुष के , या संध्या की लाली के।
हल की नोक............................................।

कोयल मोर पपीहे गाते , शाम घटा घहराती है
मधुर स्वरों में कोकिल-कंठी , बहुएँ गीत सुनाती हैं
वन बागों में झूले डलते , जब पेड़ों की डाली से।
हल की नोक............................................।

पर्वत पर से नदी उछलती मैदानों में आती है
हरियाली की चुनर धानी खेतों में लहराती है
मोती जैसे दाने हँसते हर गेहूँ की बाली के।
हल की नोक............................................।

उत्पादन की अलख जगातीं , फसलें सभी जवानों में
चौपालों पर झाँझ मजीरे , बजते नए तरानों में
गली - गली में उत्सव होते , होली और दीवाली के।
हल की नोक............................................।



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देशप्रेमी गीत - 3

जग में , हम कुछ नाम करेंगे।

काम करेंगे , काम करेंगे।
जग में , हम कुछ नाम करेंगे।

कभी नहीं आराम करेंगे।
काम करेंगे , काम करेंगे।

रूकनेवाला पानी सड़ता।
रूकनेवाला पहिया अड़ता।

रूकनेवाली घड़ी न चलती।
रूकनेवाली कलम न लिखती।

रूकनेवाली फौजें हारीं।
रूकते काम हुए हैं भारी।

हम रूकने की रीत न सीखें।
हम झुकने का गीत न सीखें।

काम सुबह और शाम करेंगे।
कभी नहीं आराम करेंगे।

काम करेंगे , काम करेंगे।
जग में , हम कुछ नाम करेंगे।



हम चरित्र निर्माण न भूलें
निर्माणों के पावन युग में , हम चरित्र निर्माण न भूलें
स्वार्थ साधना की आँधी में , वसुधा का कल्याण न भूलें।

माना अगम अगाध सिंधु है , संघर्षों का पार नहीं है
किन्तु डूबना मझधारों में , साहस को स्वीकार नहीं है
जटिल समस्या सुलझाने को , नूतन अनुसंधान न भूलें।
निर्माणों के.....................................................।

शील विनय आदर्श शिष्टता , तार बिना झनकार नहीं है
शिक्षा क्या स्वर साध सकेगी , यदि नैतिक आधार नहीं है
कीर्ति कौमुदी की गरिमा में , संस्कृति का सम्मान न भूलें।
निर्माणों के.....................................................।

आविष्कारों की कृतियों में यदि मानव का प्यार नहीं है
सृजनहीन विज्ञान व्यर्थ है , प्राणी का उपकार नहीं है
भौतिकता के उत्थानों में , जीवन का उत्थान न भूलें।
निर्माणों के.....................................................।



जो बीच राह में बैठ गए

जो बीच राह में बैठ गए , वे बैठे ही रह जाते हैं।
जो लगातार चलते रहते वे निश्चय मंजिल पाते हैं।।

माना वह दूर किनारा है , फिर सागर ने ललकारा है।
तब बैठे रहना हाथ बाँध , वीरों को नहीं गवारा है।।
जो बीच राह .......................................।।

वे कायर हैं जो हार गए , नर नाहर बाजी मार गए।
इन तूफानों से टकराकर , हिम्मतवाले उस पार गए।।
जो बीच राह .......................................।।

माना गहरा अंधियारा है , पर हमने कब स्वीकारा है।
हम दीपक हैं जलते रहते, हमसे पग-पग उजियारा है।
जो बीच राह .......................................।।
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